मिरी निगाह से वो देखते रहे हैं मुझे
रहा हूँ मैं भी कभी उस निगाह का मेआ'र
यहाँ न तल्ख़-नवाई से काम लो 'जालिब'
रहीन-ए-दर्द नहीं हैं बस्तियाँ ये दयार
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'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने
बगिया लहूलुहान
'ग़ालिब'-ओ-'यगाना' से लोग भी थे जब तन्हा
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है
बड़े बने थे 'जालिब' साहब पिटे सड़क के बीच
ज़ाबता
इक तिरी याद से इक तेरे तसव्वुर से हमें
सलाम लोगो
लोग गीतों का नगर याद आया
मेरी बच्ची
कराहते हुए इंसान की सदा हम हैं
सच ही लिखते जाना