कूचा-ए-सुबह में जा पहुँचे हम
सूरत-ए-मौज-ए-सबा पहुँचे हम
लाख उस गुल का पयाम आया था
लाख थे आबला-पा पहुँचे हम
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Gulzar
Wasi Shah
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2736) Peoples Rate This
फिर दिल से आ रही है सदा उस गली में चल
बटे रहोगे तो अपना यूँही बहेगा लहू
अपनों ने वो रंज दिए हैं बेगाने याद आते हैं
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
मुलाक़ात
दरख़्त सूख गए रुक गए नदी नाले
कम पुराना बहुत नया था फ़िराक़
सब्ज़ा-ज़ारों में गुज़र था अपना
कुछ और भी हैं काम हमें ऐ ग़म-ए-जानाँ
दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें
कराहते हुए इंसान की सदा हम हैं
उस रऊनत से वो जीते हैं कि मरना ही नहीं