ग़म के साँचे में ढल सको तो चलो
तुम मिरे साथ चल सको तो चलो
दूर तक तीरगी में चलना है
सूरत-ए-शम्अ जल सको तो चलो
Allama Iqbal
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तू रंग है ग़ुबार हैं तेरी गली के लोग
शेर से शाइरी से डरते हैं
तुझे पाया कि तुझ को खो दिया है
जागने वालो ता-ब-सहर ख़ामोश रहो
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने
तेरे होने से
इक उम्र सुनाएँ तो हिकायत न हो पूरी
छोड़ इस बात को ऐ दोस्त कि तुझ से पहले
डूब जाएगा आज भी ख़ुर्शीद
तेरी आँखों का अजब तुर्फ़ा समाँ देखा है
दास्तान-ए-दिल-ए-दो-नीम
उस सितमगर की हक़ीक़त हम पे ज़ाहिर हो गई