दयार-ए-सब्ज़ा-ओ-गुल से निकल कर
दिल ओ जाँ नज़्र-ए-सहरा हो गए हैं
कहाँ वो चाँद सी हँसती जबीनें
घनी तारीकियों में खो गए हैं
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Wasi Shah
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मुद्दतें हो गईं ख़ता करते
अश्क आँखों में अब हैं आए से
मुलाक़ात
गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है
डूब जाएगा आज भी ख़ुर्शीद
'फ़ैज़' और 'फ़ैज़' का ग़म भूलने वाला है कहीं
शे'र होता है अब महीनों में
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
हम ने दिल से तुझे सदा माना
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है
जागने वालो ता-ब-सहर ख़ामोश रहो
मुशीर