न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल
अजीब सूरत-ए-हालात हो गई प्यारे
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ये और बात तेरी गली में न आएँ हम
तेरी बस्ती में जिधर से गुज़रे
इक शख़्स बा-ज़मीर मिरा यार 'मुसहफ़ी'
मिरी निगाह से वो देखते रहे हैं मुझे
उस रऊनत से वो जीते हैं कि मरना ही नहीं
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
ग़म के साँचे में ढल सको तो चलो
जहाँ आसाँ था दिन को रात करना
मेरी बच्ची
ये उजड़े बाग़ वीराने पुराने
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने
रेफ़्रेनडम