लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी
हम तिरी दोस्ती से डरते हैं
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Gulzar
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
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कराहते हुए इंसान की सदा हम हैं
मावरा-ए-जहाँ से आए हैं
सलाम लोगो
दरख़्त सूख गए रुक गए नदी नाले
तू आग में ऐ औरत ज़िंदा भी जली बरसों
ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या
मुशीर
दियार-ए-सब्ज़ा ओ गुल से निकल कर
घर के ज़िंदाँ से उसे फ़ुर्सत मिले तो आए भी
ग़म के साँचे में ढल सको तो चलो
यौम-ए-मई
दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो