लाख कहते रहें ज़ुल्मत को न ज़ुल्मत लिखना
हम ने सीखा नहीं प्यारे ब-इजाज़त लिखना
Gulzar
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'नूर-जहाँ'
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
कॉफ़ी-हाउस
महताब-सिफ़त लोग यहाँ ख़ाक-बसर हैं
कभी तो मेहरबाँ हो कर बुला लें
न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल
दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं
एक याद
यूँ वो ज़ुल्मत से रहा दस्त-ओ-गरेबाँ यारो
पा सकेंगे न उम्र भर जिस को
मुलाक़ात
तुम्हें तो नाज़ बहुत दोस्तों पे था 'जालिब'