कुछ और भी हैं काम हमें ऐ ग़म-ए-जानाँ
कब तक कोई उलझी हुई ज़ुल्फ़ों को सँवारे
Anwar Masood
Javed Akhtar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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अश्क आँखों में अब हैं आए से
गुलशन की फ़ज़ा धुआँ धुआँ है
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है
डूब जाएगा आज भी ख़ुर्शीद
कभी तो मेहरबाँ हो कर बुला लें
अभी ऐ दोस्त ज़ौक़-ए-शाएरी है वज्ह-ए-रुस्वाई
ग़म के साँचे में ढल सको तो चलो
भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे
रंग ओ बू-ए-गुलाब कह लूँगा
माँ
झूटी ख़बरें घड़ने वाले झूटे शे'र सुनाने वाले
ये और बात तेरी गली में न आएँ हम