जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आँखें
दिल कहता है उन को भी मैं याद आता हूँ
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पा सकेंगे न उम्र भर जिस को
अश्क आँखों में अब हैं आए से
अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है
मल्का-ए-तरन्नुम नूर-ए-जहाँ की नज़्र
इक शख़्स बा-ज़मीर मिरा यार 'मुसहफ़ी'
कौन बताए कौन सुझाए कौन से देस सिधार गए
ये उजड़े बाग़ वीराने पुराने
'नूर-जहाँ'
भए कबीर उदास
सलाम लोगो
इक उम्र सुनाएँ तो हिकायत न हो पूरी
आग है फैली हुई काली घटाओं की जगह