एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं
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रेफ़्रेनडम
बड़े बने थे 'जालिब' साहब पिटे सड़क के बीच
आग है फैली हुई काली घटाओं की जगह
लोग डरते हैं दुश्मनी से तिरी
सहाफ़ी से
रंग ओ बू-ए-गुलाब कह लूँगा
जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिए बदनाम हुए
ये और बात तेरी गली में न आएँ हम
जवाँ आग
आने वाली बरखा देखें क्या दिखलाए आँखों को
जिन की यादों से रौशन हैं मेरी आँखें
तिरे माथे पे जब तक बल रहा है