दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है
दोस्तों ने भी क्या कमी की है
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
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Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
छोड़ इस बात को ऐ दोस्त कि तुझ से पहले
दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो
ग़ज़लें तो कही हैं कुछ हम ने उन से न कहा अहवाल तो क्या
तुझे पाया कि तुझ को खो दिया है
अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है
इक शख़्स बा-ज़मीर मिरा यार 'मुसहफ़ी'
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने
तिरे माथे पे जब तक बल रहा है
शे'र होता है अब महीनों में
'ग़ालिब'-ओ-'यगाना' से लोग भी थे जब तन्हा