दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें
दुनिया के मश्वरों पे न जा उस गली में चल
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
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Anwar Masood
Javed Akhtar
Rahat Indori
Gulzar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
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दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है
इस शहर-ए-ख़राबी में ग़म-ए-इश्क़ के मारे
डूब जाएगा आज भी ख़ुर्शीद
मता-ए-ग़ैर
न तेरी याद न दुनिया का ग़म न अपना ख़याल
दिल वालो क्यूँ दिल सी दौलत यूँ बे-कार लुटाते हो
ज़ाबता
शेर से शाइरी से डरते हैं
लाख कहते रहें ज़ुल्मत को न ज़ुल्मत लिखना
अफ़्सोस तुम्हें कार के शीशे का हुआ है
भुला भी दे उसे जो बात हो गई प्यारे
कहीं आह बन के लब पर तिरा नाम आ न जाए