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तेज़ चलो - हबीब जालिब कविता - Darsaal

तेज़ चलो

ये कह रहा है दिल-ए-बे-क़रार तेज़ चलो

बहुत उदास हैं ज़ंजीर ओ दार तेज़ चलो

जो थक गए हैं उन्हें गर्द-ए-राह रहने दो

किसी का अब न करो इंतिज़ार तेज़ चलो

ख़िज़ाँ की शाम कहाँ तक रहेगी साया-फ़गन

बहुत क़रीब है सुब्ह-ए-बहार तेज़ चलो

तुम्ही से ख़ौफ़-ज़दा हैं ज़मीन ओ ज़र वाले

तुम्ही हो चश्म-ए-सितम-गर पे बार तेज़ चलो

करो ख़ुलूस ओ मोहब्बत को रहनुमा अपना

नहीं दुरुस्त दिलों में ग़ुबार तेज़ चलो

बहुत हैं हम में यहाँ लोग गुफ़्तुगू-पेशा

है उन का सिर्फ़ यही कारोबार तेज़ चलो

ख़िरद की सुस्त-रवी से किसे मिली मंज़िल

जुनूँ ही अब तो करो इख़्तियार तेज़ चलो

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