मुम्ताज़

क़स्र-ए-शाही से ये हुक्म सादिर हुआ लाड़काने चलो

वर्ना थाने चलो

अपने होंटों की ख़ुश्बू लुटाने चलो गीत गाने चलो

वर्ना थाने चलो

मुंतज़िर हैं तुम्हारे शिकारी वहाँ कैफ़ का है समाँ

अपने जल्वों से महफ़िल सजाने चलो मुस्कुराने चलो

वर्ना थाने चलो

हाकिमों को बहुत तुम पसंद आई हो ज़ेहन पर छाई हो

जिस्म की लौ से शमएँ जलाने चलो, ग़म भुलाने चलो

वर्ना थाने चलो

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Mumtaz In Hindi By Famous Poet Habib Jalib. Mumtaz is written by Habib Jalib. Complete Poem Mumtaz in Hindi by Habib Jalib. Download free Mumtaz Poem for Youth in PDF. Mumtaz is a Poem on Inspiration for young students. Share Mumtaz with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.