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बगिया लहूलुहान - हबीब जालिब कविता - Darsaal

बगिया लहूलुहान

हरियाली को आँखें तरसें बगिया लहूलुहान

प्यार के गीत सुनाऊँ किस को शहर हुए वीरान

बगिया लहूलुहान

डसती हैं सूरज की किरनें चाँद जलाए जान

पग पग मौत के गहरे साए जीवन मौत समान

चारों ओर हवा फिरती है ले के तीर कमान

बगिया लहूलुहान

छलनी हैं कलियों के सीने ख़ून में लत-पत पात

और न जाने कब तक होगी अश्कों की बरसात

दुनिया वालो कब बीतेंगे दुख के ये दिन-रात

ख़ून से होली खेल रहे हैं धरती के बलवान

बगिया लहूलुहान

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