औरत
बाज़ार है वो अब तक जिस में तुझे नचवाया
दीवार है वो अब तक जिस में तुझे चुनवाया
दीवार को आ तोड़ें बाज़ार को आ ढाएँ
इंसाफ़ की ख़ातिर हम सड़कों पे निकल आएँ
मजबूर के सर पर है शाही का वही साया
बाज़ार है वो अब तक जिस में तुझे नचवाया
तक़दीर के क़दमों पर सर रख के पड़े रहना
ताईद-ए-सितमगर है चुप रह के सितम सहना
हक़ जिस ने नहीं छीना हक़ उस ने कहाँ पाया
बाज़ार है वो अब तक जिस में तुझे नचवाया
कुटिया में तिरा पीछा ग़ुर्बत ने नहीं छोड़ा
और महल-सरा में भी ज़रदार ने दिल तोड़ा
उफ़ तुझ पे ज़माने ने क्या क्या न सितम ढाया
बाज़ार है वो अब तक जिस में तुझे नचवाया
तू आग में ऐ औरत ज़िंदा भी जली बरसों
साँचे में हर इक ग़म के चुप-चाप ढली बरसों
तुझ को कभी जलवाया तुझ को कभी गड़वाया
बाज़ार है वो अब तक जिस में तुझे नचवाया
(2889) Peoples Rate This