ये सोच कर न माइल-ए-फ़रियाद हम हुए

ये सोच कर न माइल-ए-फ़रियाद हम हुए

आबाद कब हुए थे कि बर्बाद हम हुए

होता है शाद-काम यहाँ कौन बा-ज़मीर

नाशाद हम हुए तो बहुत शाद हम हुए

परवेज़ के जलाल से टकराए हम भी हैं

ये और बात है कि न फ़रहाद हम हुए

कुछ ऐसे भा गए हमें दुनिया के दर्द-ओ-ग़म

कू-ए-बुताँ में भूली हुई याद हम हुए

'जालिब' तमाम उम्र हमें ये गुमाँ रहा

उस ज़ुल्फ़ के ख़याल से आज़ाद हम हुए

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