ये सोच कर न माइल-ए-फ़रियाद हम हुए
ये सोच कर न माइल-ए-फ़रियाद हम हुए
आबाद कब हुए थे कि बर्बाद हम हुए
होता है शाद-काम यहाँ कौन बा-ज़मीर
नाशाद हम हुए तो बहुत शाद हम हुए
परवेज़ के जलाल से टकराए हम भी हैं
ये और बात है कि न फ़रहाद हम हुए
कुछ ऐसे भा गए हमें दुनिया के दर्द-ओ-ग़म
कू-ए-बुताँ में भूली हुई याद हम हुए
'जालिब' तमाम उम्र हमें ये गुमाँ रहा
उस ज़ुल्फ़ के ख़याल से आज़ाद हम हुए
(2076) Peoples Rate This