वही हालात हैं फ़क़ीरों के
वही हालात हैं फ़क़ीरों के
दिन फिरे हैं फ़क़त वज़ीरों के
अपना हल्क़ा है हल्क़ा-ए-ज़ंजीर
और हल्क़े हैं सब अमीरों के
हर बिलावल है देस का मक़रूज़
पाँव नंगे हैं बेनज़ीरों के
वही अहल-ए-वफ़ा की सूरत-ए-हाल
वारे न्यारे हैं बे-ज़मीरों के
साज़िशें हैं वही ख़िलाफ़-ए-अवाम
मशवरे हैं वही मुशीरों के
बेड़ियाँ सामराज की हैं वही
वही दिन-रात हैं असीरों के
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