'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने

'मीर'-ओ-'ग़ालिब' बने 'यगाना' बने

आदमी ऐ ख़ुदा ख़ुदा न बने

मौत की दस्तरस में कब से हैं

ज़िंदगी का कोई बहाना बने

अपना शायद यही था जुर्म ऐ दोस्त

बा-वफ़ा बन के बे-वफ़ा न बने

हम पे इक ए'तिराज़ ये भी है

बे-नवा हो के बे-नवा न बने

ये भी अपना क़ुसूर क्या कम है

किसी क़ातिल के हम-नवा न बने

क्या गिला संग-दिल ज़माने का

आश्ना ही जब आश्ना न बने

छोड़ कर उस गली को ऐ 'जालिब'

इक हक़ीक़त से हम फ़साना बने

(2108) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Mir-o-ghaalib Bane Yagana Bane In Hindi By Famous Poet Habib Jalib. Mir-o-ghaalib Bane Yagana Bane is written by Habib Jalib. Complete Poem Mir-o-ghaalib Bane Yagana Bane in Hindi by Habib Jalib. Download free Mir-o-ghaalib Bane Yagana Bane Poem for Youth in PDF. Mir-o-ghaalib Bane Yagana Bane is a Poem on Inspiration for young students. Share Mir-o-ghaalib Bane Yagana Bane with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.