मावरा-ए-जहाँ से आए हैं

मावरा-ए-जहाँ से आए हैं

आज हम ख़ुमसिताँ से आए हैं

इस क़दर बे-रुख़ी से बात न कर

देख तो हम कहाँ से आए हैं

हम से पूछो चमन पे क्या गुज़री

हम गुज़र कर ख़िज़ाँ से आए हैं

रास्ते खो गए ज़ियाओं में

ये सितारे कहाँ से आए हैं

इस क़दर तो बुरा नहीं 'जालिब'

मिल के हम उस जवाँ से आए हैं

(1540) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Mawara-e-jahan Se Aae Hain In Hindi By Famous Poet Habib Jalib. Mawara-e-jahan Se Aae Hain is written by Habib Jalib. Complete Poem Mawara-e-jahan Se Aae Hain in Hindi by Habib Jalib. Download free Mawara-e-jahan Se Aae Hain Poem for Youth in PDF. Mawara-e-jahan Se Aae Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Mawara-e-jahan Se Aae Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.