हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में
हर-गाम पर थे शम्स-ओ-क़मर उस दयार में
कितने हसीं थे शाम-ओ-सहर उस दयार में
वो बाग़ वो बहार वो दरिया वो सब्ज़ा-ज़ार
नश्शों से खेलती थी नज़र उस दयार में
आसान था सफ़र कि हर इक राहगुज़र पर
मिलते थे साया-दार शजर उस दयार में
हर-चंद थी वहाँ भी ख़िज़ाँ की उदास धूप
दिल पर नहीं था ग़म का असर उस दयार में
महसूस हो रहा था सितारे हैं गर्द-ए-राह
हम थे हज़ार ख़ाक-बसर उस दयार में
'जालिब' यहाँ तो बात गरेबाँ तक आ गई
रखते थे सिर्फ़ चाक-जिगर उस दयार में
(1603) Peoples Rate This