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दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है - हबीब जालिब कविता - Darsaal

दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है

दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है

दोस्तों ने भी क्या कमी की है

ख़ामुशी पर हैं लोग ज़ेर-ए-इताब

और हम ने तो बात भी की है

मुतमइन है ज़मीर तो अपना

बात सारी ज़मीर ही की है

अपनी तो दास्ताँ है बस इतनी

ग़म उठाए हैं शाएरी की है

अब नज़र में नहीं है एक ही फूल

फ़िक्र हम को कली कली की है

पा सकेंगे न उम्र भर जिस को

जुस्तुजू आज भी उसी की है

जब मह-ओ-महर बुझ गए 'जालिब'

हम ने अश्कों से रौशनी की है

(1992) Peoples Rate This

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