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नफ़स नफ़स न कहीं जाए राएगाँ अपना - हबीब राहत हबाब कविता - Darsaal

नफ़स नफ़स न कहीं जाए राएगाँ अपना

नफ़स नफ़स न कहीं जाए राएगाँ अपना

हवा की शाख़ पे रक्खा है आशियाँ अपना

हमारे ख़्वाब में कमख़ाब है न रेशम है

यक़ीं यक़ीं ही रहा है न अब गुमाँ अपना

अबा-क़बा तो है शाहों की चोंचले-बाज़ी

क़लंदरों का है सब से अलग जहाँ अपना

तिरे ख़ुलूस के हाथों बिके हुए हैं हम

न सूद सूद है अपना न है ज़ियाँ अपना

निगाह-ए-नाज़ ने बे-ख़ुद किया है जिस दिन से

मता-ए-जिस्म है अपनी न ज़ाद-ए-जाँ अपना

किया है चाँद पे बसने का अहद जब उस ने

ज़मीन ढूँढती फिरती है आसमाँ अपना

वहीं वहीं से नुमू पाएगी मिरी हस्ती

लहू 'हबाब' गिरा है जहाँ जहाँ अपना

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