Hope Poetry of Habeeb Musvi
नाम | हबीब मूसवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Habeeb Musvi |
मय-कदे को जा के देख आऊँ ये हसरत दिल में है
मय-कदा है शैख़ साहब ये कोई मस्जिद नहीं
गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट
दिल में भरी है ख़ाक में मिलने की आरज़ू
दश्त-ओ-सहरा में हसीं फिरते हैं घबराए हुए
वो उट्ठे हैं तेवर बदलते हुए
शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा
शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है
जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले
हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है
है निगहबाँ रुख़ का ख़ाल-रू-ए-दोस्त
है आठ पहर तू जल्वा-नुमा तिमसाल-ए-नज़र है परतव-ए-रुख़
गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट
फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है
फ़रियाद भी मैं कर न सका बे-ख़बरी से
दाग़-ए-दिल हैं ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार अब के बरस
भला हो जिस काम में किसी का तो उस में वक़्फ़ा न कीजिएगा
बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा