शब-ए-फ़ुर्क़त है ठहरते नहीं शोले दिल में
तारा टूटा कि मिरी आँख से आँसू टूटा
Javed Akhtar
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Habib Jalib
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Wasi Shah
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जबीन पर क्यूँ शिकन है ऐ जान मुँह है ग़ुस्से से लाल कैसा
ग़ुर्बत बस अब तरीक़-ए-मोहब्बत को क़त्अ कर
शम्अ का शाना-ए-इक़बाल है तौफ़ीक़-ए-करम
किसी सूरत से हुई कम न हमारी तशवीश
कोई बात ऐसी आज ऐ मेरी गुल-रुख़्सार बन जाए
वो यूँ शक्ल-ए-तर्ज़-ए-बयाँ खींचते हैं
थोड़ी थोड़ी राह में पी लेंगे गर कम है तो क्या
मय-कदे को जा के देख आऊँ ये हसरत दिल में है
जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले
जा सके न मस्जिद तक जम्अ' थे बहुत ज़ाहिद
भला हो जिस काम में किसी का तो उस में वक़्फ़ा न कीजिएगा
क़दमों पे डर के रख दिया सर ताकि उठ न जाएँ