रिंदों को वाज़ पंद न कर फ़स्ल-ए-गुल में शैख़
ऐसा न हो शराब उड़े ख़ानक़ाह में
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
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थोड़ी थोड़ी राह में पी लेंगे गर कम है तो क्या
सब में हूँ फिर किसी से सरोकार भी नहीं
बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा
शब-ए-फ़ुर्क़त है ठहरते नहीं शोले दिल में
तालिब-ए-बोसा हूँ मैं क़ासिद वो हैं ख़्वाहान-ए-जान
बुतान-ए-सर्व-क़ामत की मोहब्बत में न फल पाया
लैस हो कर जो मिरा तर्क-ए-जफ़ा-कार चले
किसी सूरत से हुई कम न हमारी तशवीश
क़त्अ होता रहे इस तरह बयान-ए-वाइज़
उस से क्या छुप सके बनाई बात
क़दमों पे डर के रख दिया सर ताकि उठ न जाएँ