लिख कर मुक़त्तआ'त में दीं उन को अर्ज़ियाँ
जो दाएरे थे कासा-ए-दस्त-ए-गदा हुए
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ग़ुर्बत बस अब तरीक़-ए-मोहब्बत को क़त्अ कर
किसी सूरत से हुई कम न हमारी तशवीश
सब में हूँ फिर किसी से सरोकार भी नहीं
है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है
फ़रियाद भी मैं कर न सका बे-ख़बरी से
शम्अ का शाना-ए-इक़बाल है तौफ़ीक़-ए-करम
शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था
लैस हो कर जो मिरा तर्क-ए-जफ़ा-कार चले
ख़ुदा करे कहीं मय-ख़ाने की तरफ़ न मुड़े
बहुत दिनों में वो आए हैं वस्ल की शब है
नासेह ये वा'ज़-ओ-पंद है बेकार जाएगा
तेज़ी-ए-बादा कुजा तल्ख़ी-ए-गुफ़्तार कुजा