जा सके न मस्जिद तक जम्अ' थे बहुत ज़ाहिद
मय-कदे में आ बैठे जब न रास्ता पाया
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1009) Peoples Rate This
भला हो जिस काम में किसी का तो उस में वक़्फ़ा न कीजिएगा
बरहमन शैख़ को कर दे निगाह-ए-नाज़ उस बुत की
गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट
है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है
कोई बात ऐसी आज ऐ मेरी गुल-रुख़्सार बन जाए
ज़बाँ पर तिरा नाम जब आ गया
रोना इन का काम है हर दम जल जल कर मर जाना भी
नासेह ये वा'ज़-ओ-पंद है बेकार जाएगा
शराब पी जान तन में आई अलम से था दिल कबाब कैसा
दिल लिया है तो ख़ुदा के लिए कह दो साहब
रिंदों को वाज़ पंद न कर फ़स्ल-ए-गुल में शैख़
सब में हूँ फिर किसी से सरोकार भी नहीं