असल साबित है वही शरअ' का इक पर्दा है
दाने तस्बीह के सब फिरते हैं ज़ुन्नारों पर
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क़त्अ होता रहे इस तरह बयान-ए-वाइज़
ख़ुदा करे कहीं मय-ख़ाने की तरफ़ न मुड़े
देख लो तुम ख़ू-ए-आतिश ऐ क़मर शीशे में है
क्या हुआ वीराँ किया गर मोहतसिब ने मय-कदा
दाग़-ए-दिल हैं ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार अब के बरस
शब-ए-फ़ुर्क़त है ठहरते नहीं शोले दिल में
शम्अ का शाना-ए-इक़बाल है तौफ़ीक़-ए-करम
भला हो जिस काम में किसी का तो उस में वक़्फ़ा न कीजिएगा
वो उट्ठे हैं तेवर बदलते हुए
ग़ुर्बत बस अब तरीक़-ए-मोहब्बत को क़त्अ कर
बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा
बरहमन शैख़ को कर दे निगाह-ए-नाज़ उस बुत की