फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे
फ़लक की गर्दिशें ऐसी नहीं जिन में क़दम ठहरे
सकूँ दुश्वार है क्यूँकर तबीअत कोई दम ठहरे
क़ज़ा ने दोस्तों से देखिए आख़िर किया नादिम
किए थे अहद-ओ-पैमाँ जिस क़दर वो कुल अदम ठहरे
छुआ तू ने जिसे मारा उसे ऐ अफ़ई-ए-गेसू
ये सब तिरयाक़ मेरे तजरबा करने में सम ठहरे
किया जब ग़ौर कोसों दूर निकली मंज़िल-ए-मक़्सद
कभी गर पा-ए-शल उट्ठे तो चल कर दो क़दम ठहरे
लगा कर दिल जुदा होना न थी शर्त-ए-वफ़ा साहब
ग़म-ए-फ़ुर्क़त की शिद्दत से करम जौर-ओ-सितम ठहरे
जो कुछ देखा वो आईना था आने वाली हालत का
जहाँ देखा यही आँखों के कांसे जाम-ए-जम ठहरे
अमल कहने पे अपने हज़रत-ए-वाइज़ करें पहले
गुनह के मो'तरिफ़ जब हैं तो वो कब मोहतरम ठहरे
जवानी की सियह-मस्ती में वस्फ़-ए-ज़ुल्फ़ लिक्खा था
बढ़ा वो सिलसिला ऐसा कि हम मुश्कीं क़लम ठहरे
ये साबित है कि मुतलक़ का तअय्युन हो नहीं सकता
वो सालिक ही नहीं जो चल के ता-दैर-ओ-हरम ठहरे
बशर को क़ैद-ए-कुल्फ़त माया-ए-अंदोह-ओ-आफ़त है
रहे अच्छे जो इस मेहमाँ-सरा में आ के कम ठहरे
'हबीब'-ए-ना-तवाँ से राह-ए-उल्फ़त तय नहीं होती
अजब क्या गर ये रस्ता जादा-ए-मुल्क-ए-अदम ठहरे
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