भला हो जिस काम में किसी का तो उस में वक़्फ़ा न कीजिएगा

भला हो जिस काम में किसी का तो उस में वक़्फ़ा न कीजिएगा

ख़याल-ए-ज़हमत न कीजिएगा मलाल-ए-ईज़ा न कीजिएगा

वो मुझ से फ़रमा रहे हैं हँस कर हमेशा मिलने की आरज़ू पर

मलाल होगा मुहाल शय की कभी तमन्ना न कीजिएगा

हबाब है ज़िंदगी का नक़्शा कहाँ का दिन माह-ओ-साल कैसा

हवा है ये दम का क्या भरोसा उम्मीद-ए-फ़र्दा न कीजिएगा

किया तो है इश्क़ हज़रत-ए-दिल लिया है सर पर ये बार-ए-मुश्किल

हुआ अगर मुद्दआ न हासिल तो राज़ इफ़शा न कीजिएगा

जो आप आएँ पए अयादत यक़ीं है हो जाए मुझ को सेहत

मगर बरा-ए-ख़ुदा ये ज़हमत कभी गवारा न कीजिएगा

जो अहल-ए-दुनिया के थे मुख़ालिफ़ हुए वो दुनिया के और न दीं के

समझिए अब ख़ात्मा है दीं का जो फ़िक्र-ए-दुनिया न कीजिएगा

ये क़ाएदा रस्म-ओ-राह का है ख़याल दोनों तरफ़ हो यकसाँ

किसी को पर्वा न होगी जिस दम किसी की पर्वा न कीजिएगा

तअल्लुक़ अहल-ए-जहाँ से हो गर तो रखिए बीम-ओ-रजा बराबर

सिवा ख़ुदा के किसी के उपर कभी भरोसा न कीजिएगा

अज़ीज़ है जौहर-ए-अमानत किसी से उल्फ़त हो या अदावत

अगर है कुछ ग़ैरत-ए-शराफ़त तो राज़ इफ़शा न कीजिएगा

बयान की एहतियाज है कब रहा है सिर्फ़ एक हर्फ़-ए-मतलब

'हबीब' का दर्द-ए-दिल सुना सब अब इस का चारा न कीजिएगा

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