Friendship Poetry of Habeeb Musvi
नाम | हबीब मूसवी |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Habeeb Musvi |
शब को नाला जो मिरा ता-ब-फ़लक जाता है
सब में हूँ फिर किसी से सरोकार भी नहीं
रोना इन का काम है हर दम जल जल कर मर जाना भी
किसी की जुब्बा-साई से कभी घिसता नहीं पत्थर
जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले
हुए ख़ल्क़ जब से जहाँ में हम हवस-ए-नज़ारा-ए-यार है
है निगहबाँ रुख़ का ख़ाल-रू-ए-दोस्त
है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है
गुलों का दौर है बुलबुल मज़े बहार में लूट
फ़िराक़ में दम उलझ रहा है ख़याल-ए-गेसू में जांकनी है
देख लो तुम ख़ू-ए-आतिश ऐ क़मर शीशे में है
दाग़-ए-दिल हैं ग़ैरत-ए-सद-लाला-ज़ार अब के बरस
चल नहीं सकते वहाँ ज़ेहन-ए-रसा के जोड़-तोड़