तुझ से उम्मीद क्या लगा बैठे
तुझ से उम्मीद क्या लगा बैठे
अपना सब कुछ ही हम गँवा बैठे
सुन के उस ने हँसी उड़ाई है
दास्ताँ किस को हम सुना बैठे
कुछ न सूझा तो इस अँधेरे में
ख़ुद को चुपके से हम जला बैठे
उस की आवाज़ का करिश्मा है
जादू रग रग में जो जगा बैठे
हैरतों का हुजूम उमड़ा है
वो भी जब पास मेरे आ बैठे
वो जो चाहे तो एक ही पल में
फूल पत्थर में भी खिला बैठे
कुछ पता भी नहीं चला हम को
आँख से दिल में कब समा बैठे
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