क़तरा क़तरा पिघलने वाला है
क़तरा क़तरा पिघलने वाला है
फिर वो सूरत बदलने वाला है
जिस के सीने में है हसद साहब
सब से पहले वो जलने वाला है
सज-सँवर कर जो फिर से संवरा है
आज वो मुझ से मिलने वाला है
उस को जचता नहीं लिबास कोई
रोज़ कपड़े बदलने वाला है
मुंतज़िर काएनात है उस की
वो जो घर से निकलने वाला है
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