जिस को देखो शाम-सवेरे बे-कल है
जिस को देखो शाम-सवेरे बे-कल है
शहर हमारा आवाज़ों का जंगल है
दीवाना है और किसी का शख़्स वही
जिस के पीछे तू बरसों से पागल है
पग फेरा इक बार हुआ था बस उस का
बस्ती सारी उस दिन से ही घायल है
संजीदा सा रहने वाला इक पैकर
हम ने देखा है नदिया सा चंचल है
प्यासी धरती देख के ठहरा है लेकिन
बरसेगा कब भरा हुआ जो बादल है
लुट जाने का रहता है डर आठ-पहर
ये बस्ती है या चंबल का जंगल है
इस युग में भी प्रेम की बातें करता है
दीवाना है 'कैफ़ी' या फिर पागल है
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