अव्वल अव्वल जिस ने हम को भेजे थे पैग़ाम बहुत

अव्वल अव्वल जिस ने हम को भेजे थे पैग़ाम बहुत

आख़िर आख़िर हाए उसी ने कर डाला बदनाम बहुत

पायल छनके भी तो कैसे नग़्मे बरसें भी तो क्यूँ

तुम भी हो मसरूफ़ उधर और मुझ को भी हैं काम बहुत

चोर-नगर में क़ातिल सारे सीना ताने फिरते हैं

हम ऐसे सादा-लौहों पर आए हैं इल्ज़ाम बहुत

माना तुझ को ताज-महल का मॉडल अच्छा लगता है

लेकिन ये भी कैसे ले दूँ उस के भी हैं दाम बहुत

चुभने लगती है फूलों की नर्मी भी तो कभी कभी

काँटों में भी 'कैफ़ी'-साहब मिलता है आराम बहुत

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