वो करम हो कि सितम एक तअल्लुक़ है ज़रूर
कोई तो दर्द-ए-मोहब्बत का अमीं होता है
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कुछ भी दुश्वार नहीं अज़्म-ए-जवाँ के आगे
उन निगाहों को अजब तर्ज़-ए-कलाम आता है
मुझ को एहसास-ए-रंग-ओ-बू न हुआ
तग-ओ-ताज़-ए-पैहम है मीरास-ए-आदम
तस्लीम है सआदत-ए-होश-ओ-ख़िरद मगर
ब-सद अदा-ए-दिलबरी है इल्तिजा-ए-मय-कशी
अपने दामन में एक तार नहीं
कितने सनम ख़ुद हम ने तराशे
ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो
चश्म-ए-सय्याद पे हर लहज़ा नज़र रखता है
हाए बे-दाद-ए-मोहब्बत कि ये ईं बर्बादी
और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी