न हो कुछ और तो वो दिल अता हो
बहल जाए जो सई-ए-राएगाँ से
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अब बहुत दूर नहीं मंज़िल-ए-दोस्त
आप शर्मिंदा जफ़ाओं पे न हों
वो भला कैसे बताए कि ग़म-ए-हिज्र है क्या
फ़ैज़-ए-अय्याम-ए-बहार अहल-ए-क़फ़स क्या जानें
चश्म-ए-सय्याद पे हर लहज़ा नज़र रखता है
मेरे लिए जीने का सहारा है अभी तक
मौत के ब'अद भी मरने पे न राज़ी होना
उन निगाहों को अजब तर्ज़-ए-कलाम आता है
मुझ को एहसास-ए-रंग-ओ-बू न हुआ
ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो
और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी