मुझ को एहसास-ए-रंग-ओ-बू न हुआ
यूँ भी अक्सर बहार आई है
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1009) Peoples Rate This
न हो कुछ और तो वो दिल अता हो
और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी
है नवेद-ए-बहार हर लब पर
न बेताबी न आशुफ़्ता-सरी है
कितने सनम ख़ुद हम ने तराशे
तग-ओ-ताज़-ए-पैहम है मीरास-ए-आदम
गुलों से इतनी भी वाबस्तगी नहीं अच्छी
तस्लीम है सआदत-ए-होश-ओ-ख़िरद मगर
दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके
मौत के ब'अद भी मरने पे न राज़ी होना
आश्ना जब तक न था उस की निगाह-ए-लुत्फ़ से