कितने सनम ख़ुद हम ने तराशे
ज़ौक़-ए-परस्तिश अल्लाहु-अकबर
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कुछ भी दुश्वार नहीं अज़्म-ए-जवाँ के आगे
हज़ारों तमन्नाओं के ख़ूँ से हम ने
मेरे लिए जीने का सहारा है अभी तक
नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं
न हो कुछ और तो वो दिल अता हो
कभी बे-कली कभी बे-दिली है अजीब इश्क़ की ज़िंदगी
उन निगाहों को अजब तर्ज़-ए-कलाम आता है
बताए कौन किसी को निशान-ए-मंज़िल-ज़ीस्त
तग-ओ-ताज़-ए-पैहम है मीरास-ए-आदम
जबीं-ए-नवाज़ किसी की फ़ुसूँ-गरी क्यूँ है
दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके
रानाई-ए-बहार पे थे सब फ़रेफ़्ता