इज़हार-ए-ग़म किया था ब-उम्मीद-ए-इल्तिफ़ात
क्या पूछते हो कितनी नदामत है आज तक
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अब बहुत दूर नहीं मंज़िल-ए-दोस्त
निगाह-ए-लुत्फ़ को उल्फ़त-शिआर समझे थे
मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं
मौत के ब'अद भी मरने पे न राज़ी होना
जो काम करने हैं उस में न चाहिए ताख़ीर
तस्लीम है सआदत-ए-होश-ओ-ख़िरद मगर
कभी बे-कली कभी बे-दिली है अजीब इश्क़ की ज़िंदगी
जब कोई फ़ित्ना-ए-अय्याम नहीं होता है
अब तो जो शय है मिरी नज़रों में है ना-पाएदार
नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं
बताए कौन किसी को निशान-ए-मंज़िल-ज़ीस्त
वो करम हो कि सितम एक तअल्लुक़ है ज़रूर