है नवेद-ए-बहार हर लब पर
कम-नसीबों को ए'तिबार नहीं
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और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी
तग-ओ-ताज़-ए-पैहम है मीरास-ए-आदम
ये महर-ओ-माह-ओ-कवाकिब की बज़्म-ए-ला-महदूद
गुलों से इतनी भी वाबस्तगी नहीं अच्छी
मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं
अब बहुत दूर नहीं मंज़िल-ए-दोस्त
आफ़ियत की उम्मीद क्या कि अभी
या दैर है या काबा है या कू-ए-बुताँ है
उन निगाहों को अजब तर्ज़-ए-कलाम आता है
वो दर्द-ए-इश्क़ जिस को हासिल-ए-ईमाँ भी कहते हैं
अपने दामन में एक तार नहीं
वो करम हो कि सितम एक तअल्लुक़ है ज़रूर