ब-सद अदा-ए-दिलबरी है इल्तिजा-ए-मय-कशी
ये होश अब किसे कि मय हराम या हलाल है
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आफ़ियत की उम्मीद क्या कि अभी
तस्लीम है सआदत-ए-होश-ओ-ख़िरद मगर
न हो कुछ और तो वो दिल अता हो
हज़ारों तमन्नाओं के ख़ूँ से हम ने
चश्म-ए-सय्याद पे हर लहज़ा नज़र रखता है
अपने दामन में एक तार नहीं
गुलों से इतनी भी वाबस्तगी नहीं अच्छी
ये ग़म नहीं है कि अब आह-ए-ना-रसा भी नहीं
आप शर्मिंदा जफ़ाओं पे न हों
कुछ भी दुश्वार नहीं अज़्म-ए-जवाँ के आगे
तग-ओ-ताज़-ए-पैहम है मीरास-ए-आदम
नवेद-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार भी तो नहीं