अपने दामन में एक तार नहीं
और सारी बहार बाक़ी है
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(819) Peoples Rate This
कितने सनम ख़ुद हम ने तराशे
आफ़ियत की उम्मीद क्या कि अभी
आप शर्मिंदा जफ़ाओं पे न हों
या दैर है या काबा है या कू-ए-बुताँ है
जिस के वास्ते बरसों सई-ए-राएगाँ की है
ब-सद अदा-ए-दिलबरी है इल्तिजा-ए-मय-कशी
जब कोई फ़ित्ना-ए-अय्याम नहीं होता है
तग-ओ-ताज़-ए-पैहम है मीरास-ए-आदम
मेरे लिए जीने का सहारा है अभी तक
रानाई-ए-बहार पे थे सब फ़रेफ़्ता
चश्म-ए-सय्याद पे हर लहज़ा नज़र रखता है
गुलों से इतनी भी वाबस्तगी नहीं अच्छी