आश्ना जब तक न था उस की निगाह-ए-लुत्फ़ से
आश्ना जब तक न था उस की निगाह-ए-लुत्फ़ से
वारदात-ए-क़ल्ब को हुस्न-ए-बयाँ समझा था मैं
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आश्ना जब तक न था उस की निगाह-ए-लुत्फ़ से
वारदात-ए-क़ल्ब को हुस्न-ए-बयाँ समझा था मैं
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