उमीद-ओ-बीम के आलम में दिल दहलता है
उमीद-ओ-बीम के आलम में दिल दहलता है
वो आते आते कई रास्ते बदलता है
अभी तो शाम है तन्क़ीद कर न रिंदों पर
सुना है रात गए मय-कदा सँभलता है
न कोई ख़ौफ़ न अंदेशा और न रख़्त-ए-सफ़र
ये कौन है जो मिरे साथ साथ चलता है
हमारे वास्ते जिस जा पे हद्द-ए-फ़ासिल है
वहीं से एक नया रास्ता निकलता है
अजीब चीज़ है ये कर्ब-ए-ख़ुद-कलामी भी
जो बात कीजे तो इक सिलसिला निकलता है
न जाने कितने सर-ए-पुर-ग़ुरूर कटते हैं
अजीब शख़्स है तलवार बन के चलता है
'हबाब' शिकवा बजा लाओ नक़्द-ए-जाँ के तुफ़ैल
तुम्हारे नाम का सिक्का यहाँ भी चलता है
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