ऐ ग़म-ए-हिज्र रात कितनी है
ऐ ग़म-ए-हिज्र रात कितनी है
और तेरी हयात कितनी है
साँस पर है मदार हस्ती का
काएनात-ए-हयात कितनी है
ओस के मोतियों से ये पूछो
आबरू-ए-हयात कितनी है
पूछता हूँ किसी से अपना पता
बे-ख़बर मेरी ज़ात कितनी है
क्यूँ हरम ही के हो रहे वाइ'ज़
वुसअ'त-ए-काएनात कितनी है
दीदा-ए-बरहमन से देख ऐ शैख़
अज़्मत-ए-सोमनात कितनी है
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