ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा
वगर्ना ज़िंदगी भर को रुला दिया होता
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पोम्पिये
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
लिबास
एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
आइना देख कर तसल्ली हुई
शाम से आँख में नमी सी है
रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
आग में क्या क्या जला है शब भर
सहमा सहमा डरा सा रहता है