शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
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डाइरी
ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं
आप के बा'द हर घड़ी हम ने
गर्म लाशें गिरीं फ़सीलों से
किर्चें
राख को भी कुरेद कर देखो
बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पाँव
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
फ़ज़ा
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
गो बरसती नहीं सदा आँखें
एक दौर