फिर वहीं लौट के जाना होगा
यार ने कैसी रिहाई दी है
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कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
एक परवाज़ दिखाई दी है
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
उर्दू ज़बाँ
राख को भी कुरेद कर देखो
चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
मैं काएनात में
शाम से आज साँस भारी है
बर्फ़ पिघलेगी
घुटन
स्केच
तआक़ुब